आसान शब्दों में अनुप्रास अलंकार की परिभाषा (anupras alankar ki paribhasha )है- अनुप्रास अलंकार हिंदी काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण अलंकार है, जिसमें एक ही वर्ण या अक्षर की पुनरावृत्ति होने से काव्य में मधुरता, लयात्मकता और सौंदर्य की वृद्धि होती है। जब किसी कविता या गद्य में एक ही स्वर या व्यंजन बार-बार प्रयुक्त होता है और उसकी पुनरावृत्ति से वाक्य में विशेष प्रकार की ध्वनि-सौंदर्य उत्पन्न होती है, तब उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
अनुप्रास अलंकार का प्रयोग प्राचीन और आधुनिक साहित्य में व्यापक रूप से हुआ है। यह कविता को गेयता प्रदान करता है और श्रोता या पाठक पर प्रभाव डालता है। तुलसीदास, सूरदास, कबीर, और आधुनिक कवियों की रचनाओं में अनुप्रास अलंकार के सुंदर उदाहरण मिलते हैं, जो हिंदी साहित्य को सजीव और आकर्षक बनाते हैं।
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं (Anupras Alankar Kise Kahate Hain)
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं, यह समझने के लिए हमें इसके प्रयोग को देखना होगा। हिंदी काव्यशास्त्र में अनुप्रास अलंकार एक महत्वपूर्ण शब्दालंकार है, जिसमें किसी कविता या गद्य में एक ही वर्ण या अक्षर की पुनरावृत्ति होती है, जिससे भाषा में मधुरता और लय आती है। जब किसी काव्य पंक्ति में विशेष ध्वनि प्रभाव उत्पन्न करने के लिए समान वर्णों या ध्वनियों का पुनरावृत्त रूप से प्रयोग किया जाता है, तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण के लिए—
“चंचल चितवन चुरा रही चंद्रिका”
इसमें ‘च’ वर्ण की पुनरावृत्ति अनुप्रास अलंकार का निर्माण करती है।
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं,(anupras alankar kise kahate hain) इसका उत्तर यही है कि यह अलंकार कविता की सौंदर्य अभिव्यक्ति को बढ़ाने और पाठकों पर प्रभाव डालने का कार्य करता है। तुलसीदास, सूरदास और कबीर की रचनाओं में इसका सुंदर प्रयोग मिलता है।
अनुप्रास अलंकार के 10 उदाहरण (anupras alankar ke udaharan )
जैसे की ऊपर आपने अनुप्रास अलंकार की परिभाषा (anupras alankar ki paribhasha) और अनुप्रास अलंकार किसे कहते है, तो समझा है, उसी प्रकार आपको यहाँ आपको अलंकार के उदाहरण अर्थ सहित मिलेंगे।
कंकण की कांति, कमल के पत्ते जैसा।
अर्थ: यह वाक्य अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है, जिसमें क, क, क ध्वनियाँ बार-बार आ रही हैं।
बगिया में बहे बयार बडी मीठी।
अर्थ: यहाँ पर “ब” ध्वनि का पुनरावृत्ति हुई है, जो अनुप्रास अलंकार है।
मधुर मिलन की मूरत बनी महक।
अर्थ: यहाँ “म” ध्वनि की पुनरावृत्ति हो रही है, जो अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
नदियाँ नाचती, नभ में निहारती।
अर्थ: यहाँ “न” ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है, यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
सपनों में संजोई सुगंधी सवारी।
अर्थ: यहाँ पर “स” ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है, यह अनुप्रास अलंकार को प्रदर्शित करता है।
खग कलरव करते, क्रीड़ा करते।
अर्थ: यहाँ “क” ध्वनि की पुनरावृत्ति हो रही है, यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
धरती डोलती, दिन ढलता।
अर्थ: इस वाक्य में “ड” ध्वनि का प्रयोग अनुप्रास अलंकार के रूप में हुआ है।
हर हर्ष, हर हलचल, हर हाल।
अर्थ: यहाँ “ह” ध्वनि का पुनरावृत्ति हो रही है, यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
प्यारी पंखुड़ियों पर पराग पिघला।
अर्थ: यहाँ “प” ध्वनि की पुनरावृत्ति हो रही है, जो अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
चमचम चाँद चाँदनी में चमकते हैं।
अर्थ: “च” ध्वनि की पुनरावृत्ति होने के कारण यह अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है।
यह सभी उदाहरण अनुप्रास अलंकार का सही तरीके से इस्तेमाल करते हैं, जिसमें एक ही ध्वनि का पुनरावृत्तिकरण होता है।
अनुप्रास अलंकार के भेद ( anupras alankar ke bhed )
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अनुप्रास अलंकार के भेद या प्रकार होते हैं जो कि निम्नलिखित है।
- छेकानुप्रास
- अन्त्यानुप्रास
- लाटानुप्रास
- वृत्यानुप्रास
- श्रुत्यनुप्रास
छेकानुप्रास अलंकार – किसी भी वाक्यांश में अनुक्रमिक रूप से व्यंजनों की आवृत्ति सिर्फ एक बार होती है, तो से ‘छेकानुप्रास’ अलंकार कहते हैं।
उदाहरण: बूझत स्याम कौन तू गोरी,
कहाँ रहत काकी है बेटी।।
अनन्त्यानुप्रास अलंकार – जब पद या पंक्ति के अंत में एक समान वर्ण बार बार आये, तो अन्त्यानुप्रास अलंकार कहते है।
उदाहरण: लगा दी किसने आकर आग,
कहाँ था तू संशय के नाग?
लाटानुप्रास अलंकार – जब और शब्दों की पुनावृत्ति बार बार एक साथ होती है, और प्रत्येक बार उसका अर्थ वही हो, तो उसे लटानुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण: पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग ता हेतु।
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ग नरक ता हेतु।।
श्रुत्यनुप्रास अलंकार – जिस पंक्ति या काव्य में मधुर वर्णो की आवृति होती है, तो उस अलंकार को श्रुत्यनुप्रास अलंकार कहते हैं।
उदाहरण: दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।
वृत्यानुप्रास अलंकार – किसी वाक्यांश में एक व्यंजन की आवृत्ति अनेक बार होती है, तो उसे ‘वृत्यनुप्रास’ अलंकार कहते हैं।
उदाहरण: सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरन्तर गावैं।
हिंदी साहित्य में अनुप्रास अलंकार का महत्व
अनुप्रास अलंकार का उपयोग हिंदी साहित्य में एक विशेष प्रभाव उत्पन्न करता है। यह पाठक या श्रोता के मन में एक गहरी छाप छोड़ता है और कविता को गेयता प्रदान करता है। इसका उपयोग कवियों द्वारा विशेष भावनाओं को उभारने, छंद की लयबद्धता बढ़ाने और भाषा को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है।
अनुप्रास अलंकार का प्रमुख उद्देश्य कविता को कर्णप्रिय बनाना और उसमें लय एवं प्रवाह स्थापित करना होता है। हिंदी साहित्य के महान कवि तुलसीदास, सूरदास, कबीर और मीरा बाई की रचनाओं में अनुप्रास अलंकार के उदाहरण देखने को मिलते हैं। अलंकार की परिभाषा, और भेद के बारे में जानने के लिए आप सही ब्लॉगपोस्ट पर है।
FAQ
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण (Anupras Alankar ke Udaharan)
इस लेख में आपको अनुप्रास अलंकार के उदाहरण मिलेंगे, जो आपको काव्य के बारे में समझने में मदद करेंगे।
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा (anupras alankar ke udaharan)
अनुप्रास अलंकार हिंदी काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण अलंकार है, जो कविता या गद्य की सुंदरता बढ़ाने में सहायक होता है।
अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं (anupras alankar kise kahate hain)
जब किसी कविता या गद्य में एक ही स्वर या व्यंजन बार-बार प्रयुक्त होता है और उसकी पुनरावृत्ति से वाक्य में विशेष प्रकार की ध्वनि-सौंदर्य उत्पन्न होती है, तब उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
अनुप्रास अलंकार के भेद (anupras alankar ke bhed )
अनुप्रास अलंकार के पांच भेद है, जो इस प्रकार है।
छेकानुप्रास
अन्त्यानुप्रास
लाटानुप्रास
वृत्यानुप्रास
श्रुत्यनुप्रास