अलंकार की परिभाषा, भेद, और उपभेद उदाहरण के साथ समझें ( Alankar ki Paribhasha aur Bhed )

अलंकार काव्य या साहित्य में सौंदर्य बढ़ाने वाले तत्व हैं। जब किसी कविता, गद्य या साहित्यिक रचना में शब्दों का ऐसा चयन और विन्यास किया जाता है, जिससे उसकी अभिव्यक्ति प्रभावशाली और आकर्षक हो जाए, उसे अलंकार कहते हैं। इस लेख में आप समझेंगे अलंकार की परिभाषा, भेद, उत्पत्ति और प्रकारों के बारे में पूर्ण जानकारी। 

अलंकार, साहित्य को सौंदर्य, माधुर्य, भाषा को जीवंत, सांगीतिक, संवेदनशील, और गहराई प्रदान करता है। ताकि, नाटक, कविता, गीत, और अन्य हिंदी साहित्य रचना में योगदान अनमोल हो सके। हम आपको अलंकार के भेद और प्रत्येक प्रकार को उदहारण सहित पेश करेंगे। ताकि आप इनको पढ़कर आसानी से समझ सके। 

अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: शब्दालंकार और अर्थालंकार। शब्दालंकार में शब्दों का सौंदर्य होता है, जबकि अर्थालंकार में भावों की सुंदरता झलकती है। अलंकार का उद्देश्य पाठक या श्रोता को साहित्यिक रचना से आनंदित करना और उसमें रुचि उत्पन्न करना होता है। 

अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित (Alankar Ki Paribhasha in Hindi)

अलंकार की परिभाषा (alankar ki paribhasha ) के अनुसार, काव्य या साहित्य में सौंदर्य और प्रभाव उत्पन्न करने वाले विशेष तत्वों को अलंकार कहा जाता है। यह शब्द ‘अलम्’ और ‘कार’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘सज्जा करना’। जब कविता या गद्य में भावों को अधिक प्रभावशाली और सुंदर बनाने के लिए शब्दों का सजावटी उपयोग किया जाता है, तब वह अलंकार कहलाता है। 

अलंकार साहित्यिक रचना में ऐसी कलात्मकता और सौंदर्य जोड़ता है, जो पाठक या श्रोता के मन को मोहित कर ले। यह काव्य में न केवल सौंदर्य का संचार करता है, बल्कि भावों को अधिक स्पष्ट, सजीव और प्रभावशाली बनाने में भी सहायता करता है। 

उदाहरण: “वह चाँद सा सुंदर है” (उपमा अलंकार), “कमल के समान उसका मुख खिल उठा” (रूपक अलंकार)। अलंकार काव्य को आकर्षक और भावपूर्ण बनाने का कार्य करता है।

अलंकार के भेद उदाहरण सहित (Alankar Ke Bhed in Hindi)

अलंकार भारतीय काव्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य कविता या साहित्य की अभिव्यक्ति में सौंदर्य और प्रभाव डालना होता है। शब्दों का चयन, उनकी ध्वनि, उनका संयोजन, और भावों की गहराई को उत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए कवि अलंकार का प्रयोग करता है। 

अलंकार का सही तरीके से उपयोग होने से, एक साधारण वाक्य भी विशेष  भावना, महत्व और भाव को प्रकट करने में सक्षम हो जाता है। अलंकार के भेद ( alankar ke bhed ) वाक्य में, गति, मधुरता, ध्वनि की सुंदरता और महत्व को बढ़ाता है। जिससे पाठको को एक अलग ही आनंद और मनोरंजन का अहसास मिलता है। 

अलंकारों के प्रकारो की मदद से, पाठक भाषा की विविधता और समृद्धि का आनंद ले सकते है। नीचे बिन्दुओ के माध्यम से हम अलंकारों के भेद की जानकरी उदाहरण सहित पेश करेंगे। अलंकार के भेद मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं-शब्दालंकार, उभयालंकार , पाश्चात्य  और अर्थालंकार। लेकिन मुख्य रूप से दो अलंकारों का इस्तेमाल हिंदी साहित्य में अधिक देखने को मिलता है- शब्दालंकार, अर्थालंकार। 

alankar ki paribhasha aur bhed

  1. शब्दालंकार (Shabdalankar)
  2. अर्थालंकार (Artha Alankar)
  3. उभयालंकार (Ubhaya Alankar)
  4. पाश्चात्य अलंकार (Pashchatya Alankar)

शब्दालंकार (Shabdalankar)

शब्दालंकार (Shabdalankar) काव्य में शब्दों की ध्वनि, लय, छंद और अभिव्यक्ति   के सौन्दर्य को दर्शाता है। यह अलंकार मुख्य रूप से शब्दों की संरचना और ध्वनि पर आधारित होता है। शब्दालंकार काव्य को मधुर, आकर्षक और प्रभावशाली बनाता है। इसके प्रमुख भेद हैं:

1 अनुप्रास अलंकार (Anupras Alankar)

जब एक ही ध्वनि या वर्ण की पुनरावृत्ति किसी वाक्य में की जाती है, तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं। अनुप्रास काव्य की ध्वनि को सुरीला और आकर्षक बना देता है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण (Anupras Alankar ke Udaharan )

चंचल चल चाल चली चपला- यहां ‘च’ ध्वनि की पुनरावृत्ति हो रही है, जो वाक्य को मधुर और आकर्षक बनाती है।

चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में- इस उदाहरण में ‘च’ वर्ण की आवृत्ति से वाक्य की समंगति और गति प्रवाह दिखता है। 

अनुप्रास के उपभेद:

  • लाटानुप्रास
  • अत्नयानुप्रास
  • श्रुत्यानुप्रास
  • छेकानुप्रास
  • वृतानुप्रास

2 श्लेष अलंकार (Shlesh Alankar)

जब एक ही शब्द या वाक्य के दो अर्थ निकलते हैं, और वह दोनों अर्थ संदर्भ में फिट बैठते हैं, तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं। यह अलंकार शब्दों के बहुरूपी अर्थों का उपयोग करता है। इस अलंकार से पाठक का ध्यान आकर्षित होता है। 

श्लेष अलंकार के उदाहरण (Shlesh Alankar ke Udaharan )

गिरि पर गिरि राज करे- यहां ‘गिरि’ शब्द का एक अर्थ पहाड़ और दूसरा इंद्र के लिए प्रयुक्त हो सकता है, 

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून- इस उदाहरण में ‘पानी’ शब्द का तीन के तीन मतलब निकलते है जैसे – ‘कान्ति’, ‘आत्मसम्मान’, और ‘जल’।

3 यमक अलंकार (Yamak Alankar)

यमक अलंकार से तात्पर्य है, जिसमे ही शब्द की पुनरावृत्ति बार बार होती है, लेकिन उस शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। इससे वाक्य और काव्य के अर्थ में प्रतिरूपी और प्रतिभावान होता है। इससे कविता में लय और सामंजस्य पैदा होता है।

यमक अलंकार के उदाहरण (Yamak Alankar ke Udaharan )

तब हार पहार से लागत है, अब आनि के बीच पहार परे- इस वाक्य में एक पहार (पर्वत) और दूसरे पहार का मतलब विशाल है।

काली घटा का घमंड घटा-  इस वाक्य में घटा (बादल) घटा (कम होना) है। इसका मतलब है कि घनघोर काले बादल का घमंड कम हुआ है।

कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय- इस उदाहरण में ‘कनक’ शब्द का दोहरा प्रयोग होकर उसकी धातु और स्वर्ण दोनों अर्थों में वाक्य को संवादित किया गया है।

अर्थालंकार  (Artha Alankar)

जब किसी काव्य में शब्दों का प्रयोग ऐसा हो कि उसके माध्यम से काव्य का अर्थ गहन, रोचक और चमत्कारपूर्ण बन जाए, तो उसे अर्थालंकार कहते हैं। अर्थात, जब काव्य का सौंदर्य अर्थ में निहित होता है, न कि मात्र शब्दों में, तो वह अर्थालंकार कहलाता है।  इस अलंकार में वाक्य में छिपी मतलब की पहचान होती है। 

अर्थालंकार का संबंध काव्य में प्रस्तुत विचारों, भावों, चित्रण और भावनात्मक प्रभाव से होता है। यह काव्य को भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी बनाता है।

अर्थालंकार के भेद ( (Artha Alankar ke Bhed )

अर्थालंकार के कई भेद हैं, जो काव्य में अर्थ को विविध रूपों में प्रस्तुत करते हैं। प्रमुख अर्थालंकारों के भेद निम्नलिखित हैं:

1 उपमा अलंकार (Upma Alankar)

जब किसी वस्तु की तुलना किसी अन्य वस्तु से उसके समान गुण के आधार पर की जाती है, तो वहाँ उपमा अलंकार होता है। 

उपमा अलंकार के उदाहरण (Upma Alankar ke Udaharan)

चंद्रमा के समान उसका मुख है– यहाँ ‘मुख’ उपमेय है, ‘चंद्रमा’ उपमान है, और ‘समान’ के द्वारा समानता स्थापित की गई है।

बिजली की तरह तेज उसकी चाल है– यहाँ ‘चाल’ उपमेय है, ‘बिजली’ उपमान है, और विशेष गुण ‘तेज’ का उल्लेख किया गया है।

तुम्हारा मुख चंद्रमा के समान है, लेकिन तुम्हारे मुख में कलंक नहीं है– यहाँ ‘मुख’ और ‘चंद्रमा’ के बीच समानता है, लेकिन भेद ‘कलंक’ न होने का उल्लेख किया गया है।

उसके बाल काले बादलों की तरह लहराते हैं– यहाँ ‘बाल’ को ‘काले बादलों’ के रूप में कल्पित किया गया है।

2 रूपक अलंकार (Roopak Alankar)

जब काव्य में उपमेय और उपमान के बीच इस प्रकार समानता स्थापित की जाती है कि दोनों एक-दूसरे में विलीन हो जाएँ और उपमेय को उपमान के रूप में प्रस्तुत किया जाए, तो उसे रूपक अलंकार कहते हैं। इसमें एक वाक्य की विशेषता अन्य चीज पर प्रकट होती है, इस अलंकार में वाक्य को उत्कृष्ट और विशिष्ट  अर्थ में प्रस्तुत करने के लिए  तुलनात्मक विवेक प्रयोग होता है। 

रूपक अलंकार उदाहरण (Roopak Alankar ke Udaharan)

मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों- इस उदाहरण में चन्द्रमा को खिलौना तुलित किया गया है, जिससे वाक्य की गहराई बढ़ती है।

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो- यहां राम रतन (उपमेय) पर धन (उपमान) का आरोप है और दोनों में अभिन्नता है, इसलिए यहां रूपक अलंकार होगा।

मुनि पद कमल बंदिदोउ भ्राता- मुनि के चरणों (उपमेय) पर कमल (उपमान) का आरोप है, इसलिए यहां रूपक अलंकार है।

अतिशयोक्ति अलंकार (Atishyokti Alankar)

अतिशयोक्ति से तात्पर्य है, जिसमे शब्दों का प्रयोग अधिकता  या अतिशयोक्ति का विवेचन करने के लिए प्रकट किया जाता है। इसमें शब्दों का अतिरेक स्वरुप होता है, जिससे पाठक का ध्यान आकर्षित होता है और अर्थ का मतलब पता चलता है। इसमें शब्दों का उपयोग बहुत ध्यान से होता है, ताकि वाक्य का प्रभाव प्रोत्साहित हो सके। 

अतिशयोक्ति अलंकार उदाहरण  (Atishyokti Alankar ke Udaharan)

भूप सहस दस एकहिं बारा। लगे उठावन टरत न टारा- उपर्युक्त दिए गए वाक्य में बताया गया है कि जब धनुर्भग हो रहा था तो जब वह किसी से नही उठावतो एक साथ दस हजार राजा

हनुमान की पूँछ में, लग न पायी आग- इस उदाहरण में हनुमान की पूँछ को इस प्रकार से प्रशंसा की गई है कि उसमें आग नहीं लगती, जिससे वाक्य की गहराई बढ़ती है।

उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar)

उत्प्रेक्षा अलंकार वह अलंकार है, जिसमें किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों का निरूपण किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से उपमेय का प्रयोग होता है, जिससे एक वस्तु की विशेषता को दूसरे के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। इस अलंकार में अर्थ की गहरी भावना को प्रकट करने के लिए किसी अन्य वस्तु या घटना का उदाहरण दिया जाता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार उदाहरण  (Utpreksha Alankar ke Udaharan)

तेरा चेहरा चाँद की तरह चमकता है। – यहाँ पर चेहरे की सुंदरता को चाँद की चमक से तुलना की गई है।

उसकी हँसी गुलाब के फूल जैसी महकती है। – हँसी की मिठास को गुलाब के फूल से जोड़ा गया है।

5 मानवीकरण अलंकार (Manvikaran Alankar)

मानवीकरण अलंकार एक प्रकार का अलंकार है, जिसमें निर्जीव वस्तु या अमूर्त विचारों को मानव गुण या रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें निर्जीव वस्तुओं या भावनाओं को इस तरह व्यक्त किया जाता है, जैसे वे इंसान हों, ताकि वे अधिक सजीव और प्रभावशाली लगें। इसका उद्देश्य कविता या लेख को और अधिक जीवंत और आकर्षक बनाना है।

मानवीकरण अलंकार उदाहरण  (Manvikaran Alankar ke Udaharan)

वृक्ष ने अपनी शाखाओं से धरती को आलिंगन किया- वृक्ष को आलिंगन करने की क्षमता दी गई है।

समुंदर गुस्से में था, उसकी लहरें तट से टकरा रही थीं- यहाँ समुद्र को गुस्से जैसा मानवीय भावनात्मक गुण दिया गया है।

3. उभयालंकार (Ubhaya Alankar)

उभयालंकार वह अलंकार है, जिसमें एक ही शब्द या वाक्य में दो प्रकार के अलंकार उपस्थित होते हैं। अर्थात्, यह ऐसे अलंकार होते हैं, जो दो विभिन्न रूपों में उपस्थित होते हैं, एक साथ मिलकर अर्थ की गहराई और सौंदर्य को बढ़ाते हैं। इस प्रकार के अलंकार से भाषा में नयापन और आकर्षण उत्पन्न होता है। उभयालंकार के द्वारा काव्य या साहित्य के प्रभाव में वृद्धि होती है, क्योंकि इसमें शब्दों का उत्कृष्ट उपयोग होता है, जिससे अर्थ की पूर्णता और सूक्ष्मता व्यक्त होती है।

उभयालंकार अलंकार उदाहरण  ((Ubhaya Alankar ke Udaharan)

वह मुरली की ध्वनि जैसे मधुर गीतों का गाता है- यह वाक्य ‘स्मरण’ और ‘रूपक’ दोनों का संयोजन है। यहाँ ‘मुरली’ का रूपक प्रयोग किया गया है, और ‘ध्वनि’ को मधुरता का संकेत मिलता है, जो उभयालंकार को दर्शाता है।

चाँद की चाँदनी जैसे चेहरे पर मुस्कान बिखरी हो- यहाँ पर ‘चाँद’ और ‘चाँदनी’ दोनों का एक साथ प्रयोग किया गया है, जो उभयालंकार का उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें रूपक और अनुप्रास अलंकार का समावेश होता है।

4. पाश्चात्य अलंकार (Pashchatya Alankar)

परिभाषा: पाश्चात्य अलंकार वह काव्य तकनीकें होती हैं जिनका प्रयोग काव्य रचनाओं में विचारों, भावनाओं, और अनुभवों को प्रभावी और सूक्ष्म रूप से व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इन अलंकारों के माध्यम से कविता का रंग और गहराई बढ़ाई जाती है, जिससे कविता अधिक आकर्षक और प्रभावी बनती है।

पाश्चात्य अलंकार उदाहरण  (Pashchatya Alankar  ke Udaharan)

सुना समुंदर का सुकून सुनी खाली रात- इसमें ‘स’ ध्वनि से शुरू होने वाले शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह पाश्चात्य अलंकार वाक्य की मेलोडियसता बढ़ाता है।

अलंकार किसे कहते हैं

अलंकार एक साहित्यिक उपकरण है, जिसका प्रयोग भाषा को सौंदर्यपूर्ण और प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है। यह कविता या गद्य के भाव, विचार और चित्रों को व्यक्त करने में मदद करता है। अलंकार का उद्देश्य किसी विषय या भावना को सुंदर और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करना है। हिंदी साहित्य में प्रमुख अलंकारों में अनुप्रास, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, आदि शामिल हैं। प्रत्येक अलंकार का अपनी विशिष्टता होती है, जो पाठक या श्रोता पर गहरे प्रभाव डालता है। अलंकार का प्रयोग कविता को लयबद्ध और नयनाभिराम बनाने के लिए किया जाता है।

Frequently Asked Questions

अलंकार किसे कहते हैं?

अलंकार एक साहित्यिक अनुप्रयोग है, जिसमें शब्दों या वाक्यांशों के माध्यम से कला या सुंदरता का बोध कराया जाता है। यह भाषा की सुदंरता और प्रभाव को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

Alankar ki Paribhasha

अलंकार वह विशेषता है, जिसमें किसी विचार या भावनाओं को दर्शाने के लिए शब्दों या वाक्यांशों का प्रयोग किया जाता है, ताकि वह प्रभावशाली और आकर्षक बन सके।

नूपुर अलंकार क्या है?

नूपुर अलंकार में किसी विशेष वस्तु या रूप का समानता या मेलजोल दिखाया जाता है, जिससे किसी स्थिति या विचार को ज्यादा प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें प्रकट होने वाली चीज़ को नूपुर (घंटी की आवाज) से तुलना की जाती है।

वाक्याभिनय अलंकार क्या है?

वाक्याभिनय अलंकार में किसी वाक्य या विचार का उच्चारण और अभिव्यक्ति इस तरह से की जाती है, जिससे यह अधिक अर्थपूर्ण और सुंदर लगे। इसमें शब्दों के साथ-साथ वाचन और भावनाओं का मेल होता है।

हेतुभाषा अलंकार का क्या अर्थ है?

हेतुभाषा अलंकार में किसी विषय या विचार के कारण को या उद्देश्यों को बहुत अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इसमें विचार की स्पष्टता और संवाद की ताकत होती है।

द्वन्द्व अलंकार क्या है?

द्वन्द्व अलंकार वह अलंकार है, जिसमें दो विपरीत या समान विचारों या घटनाओं को एक साथ जोड़ा जाता है। इसका उद्देश्य दर्शाना है कि किसी बात को दो दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है।

रसिताली अलंकार क्या होता है?

रसिताली अलंकार वह अलंकार होता है, जिसमें किसी पात्र या स्थिति का उत्थान या उसे और सुंदर रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें भावनाओं और दृश्यता का ध्यान रखा जाता है।

अलंकार का साहित्य में क्या महत्व है?

अलंकार का साहित्य में बहुत महत्व है क्योंकि यह शब्दों को काव्यात्मक और आकर्षक बनाता है, जिससे पाठक या श्रोता को गहरी छाप पड़ती है और विषय को समझने में मदद मिलती है।

अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?

अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: शाब्दिक अलंकार और अर्थालंकार। शाब्दिक अलंकार शब्दों की सृष्टि में होते हैं, जबकि अर्थालंकार में शब्दों के अर्थ और भावनाओं को प्रमुखता दी जाती है।


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